दिनभरमें वह कार्य कर लें, जिससे रातमें सुखसे रह सके और आठ महीनोंमें वह कार्य कर ले, जिससे वर्षाके चार महीने सुखसे व्यतीत कर सके । पहली अवस्थामें वह कार्य करे, जिससे वृद्धावस्थामें सुखपूर्वक रह सके और जीवनभर वह कार्य करे, जिससे मरनेके बाद भी सुखसे रह सके ।
महाभारत, उधोग. ३५।६७-६८
जिसके घरसे अतिथि निराश होकर लौट जाता है, वह उसे अपना पाप देकर बदलेमें उसका पुण्य लेकर चला जाता है ।
- विष्णुस्मृति ६७
भक्त दुर्लभ है, भगवान् नहीं ।
बुद्धिमान् मनुष्यको राजा, ब्राह्मण, वैध, मूर्ख, मित्र, गुरु और प्रियजनोंके साथ विवाद नहीं करना चाहिये।
- चाणक्यसुत्र ३५२
तिल, कुश और तुलसी – ये तीन पदार्थ मरणासन्न व्यक्तिकी दुर्गतिको रोककर उसे सद्गति दिलाते हैं।
- गरुडपुराण
कबिरा सब जग निर्धना धनवंता नहिं कोय ।
धनवंता सोइ जानिये जाके राम नाम धन होय ॥
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