रविवार, 24 अप्रैल 2011

लक्ष्मी चालीसा






श्री लक्ष्मी चालीसा

Lakshmi (Laxmi) Chalisa

॥ दोहा ॥

मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास ।

मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस ॥

॥ सोरठा ॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं ।

सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका ॥

॥ चौपाई ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही । ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥

तुम समान नहिं को‌ई उपकारी । सब विधि पुरवहु आस हमारी ॥

जय जय जगत जननि जगदम्बा । सबकी तुम ही हो अवलम्बा ॥

तुम ही हो सब घट घट वासी । विनती यही हमारी खासी ॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी । दीनन की तुम हो हितकारी ॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी । कृपा करौ जग जननि भवानी ॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी । जगजननी विनती सुन मोरी ॥

ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता । संकट हरो हमारी माता ॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो । चौदह रत्न सिन्धु में पायो ॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी । सेवा कियो प्रभु बनि दासी ॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा । रुप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा । लीन्हे‌उ अवधपुरी अवतारा ॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं । सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी । विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी । कहं लौ महिमा कहौं बखानी ॥

मन क्रम वचन करै सेवका‌ई । मन इच्छित वांछित फल पा‌ई ॥

तजि छल कपट और चतुरा‌ई । पूजहिं विविध भांति मनला‌ई ॥

और हाल मैं कहौं बुझा‌ई । जो यह पाठ करै मन ला‌ई ॥

ताको को‌ई कष्ट न हो‌ई । मन इच्छित पावै फल सो‌ई ॥

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि । त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी ॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै । ध्यान लगाकर सुनै सुनावै ॥

ताकौ को‌ई न रोग सतावै । पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना । अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना ॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै । शंका दिल में कभी न लावै ॥

पाठ करावै दिन चालीसा । ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै । कमी नहीं काहू की आवै ॥

बारह मास करै जो पूजा । तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही । उन सम को‌इ जग में कहुं नाहीं ॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ा‌ई । लेय परीक्षा ध्यान लगा‌ई ॥

करि विश्वास करै व्रत नेमा । होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा ॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी । सब में व्यापित हो गुण खानी ॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं । तुम सम को‌उ दयालु कहुं नाहिं ॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै । संकट काटि भक्ति मोहि दीजै ॥

भूल चूक करि क्षमा हमारी । दर्शन दजै दशा निहारी ॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी । तुमहि अछत दुःख सहते भारी ॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में । सब जानत हो अपने मन में ॥

रुप चतुर्भुज करके धारण । कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ा‌ई । ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिका‌ई ॥



॥ दोहा ॥

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास ।

जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश ॥

रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर ।

मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर ॥

देवी सरस्वती का पूजन – संकल्प, ध्यान मंत्र एवं विधि


Basant Panchami Pujan Vidhi – Sankalp, Dhyaan Mantra & Stuti

माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथिको प्रात:काल में सरस्वती देवी की पूजा करनी चाहिए घट (कलश) की स्थापना कर के उसमे वाग्देवी का आवाहन करे तथा विधि पूर्वक देवी सरस्वती की पूजा करे सर्व-पर्थम आचमन , प्राणायामआदि द्वारा अपनी बह्याभ्यंतर शुचिता सम्पन्न करे फिर सरस्वती पूजन का संकल्प ग्रहण करे


संकल्प

यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये

तत्पश्चात श्रीगणेश की आदिपूजा करके कलश स्थापित कर उसमे देवी सरस्वतीका सादर आवाहन करके वैदिक या पौराणिक मंत्रो का उचारण करते उपचार -सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करे

वेदोक्त अष्टाक्षरयुक्त मंत्र सरस्वतीका मूलमंत्र है

श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा

इस अष्टाक्षर-मंत्र से पूजन सामग्री समर्पित करते हुए देवी की आरती करके स्तुति करे

मां सरस्वती की आराधना करने के लिए श्लोक है-

सरस्वती शुक्ल वर्णासस्मितांसुमनोहराम।

कोटिचन्द्रप्रभामुष्टश्री युक्त विग्रहाम।

वह्निशुद्धांशुकाधानांवीणा पुस्तक धारिणीम्।

रत्नसारेन्द्रनिर्माण नव भूषण भूषिताम।

सुपूजितांसुरगणैब्रह्म विष्णु शिवादिभि:।

वन्दे भक्त्यावन्दितांचमुनीन्द्रमनुमानवै:।
- (देवीभागवत )

Aum Jai Saraswati Mata – Aarti of Goddess Sarasvati Devi


सत्वगुण से उत्पन्न होने के कारण इनकी पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों में अधिकांश श्वेत वर्ण की होती हैं। जैसे- श्वेत चंदन, पुष्प, परिधान, दही-मक्खन, धान का लावा, सफेद तिल का लड्डू, अदरक, श्वेत धान, अक्षत, शुक्ल मोदक, घृत, नारियल और इसका जल, श्रीफल, बदरीफल आदि।

देवी सरस्वती की प्रसिद्ध ‘द्वादश नामावली’ का पाठ करने पर भगवती प्रसन्न होती हैं-


प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती।

तृतीयं शारदा देवी चतुर्थ हंस वाहिनी।।

पञ्चम जगतीख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा।

सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमें ब्रह्मचारिणी।।

नवमं बुद्धिदात्री च दशमं वरदायिनी।

एकादशं चन्द्रकान्ति द्वादशं भुवनेश्वरी।।

द्वादशैतानि नामानी त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।

जिह्वाग्रे वसते नित्यं ब्रह्मरूपा सरस्वती ।।

तुलसीदास ने सबका मंगल करने वाली देवी को वाणी कहा है। वे देवी गंगा और सरस्वती को एक समान मानते हैं-

पुनि बंदउंसारद सुर सरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।

भज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अविवेका।

Jai Ma Saraswati

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

होली और होलिका दहन


फागुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक मनाया जाता है । इसी के साथ होली उत्सव मनाने की शुरु‌आत होती है। होलिका दहन की तैयारी भी यहाँ से आरंभ हो जाती है। इस पर्व को नवसंवत्सर का आगमन तथा वसंतागम के उपलक्ष्य में किया हु‌आ यज्ञ भी माना जाता है। वैदिक काल में इस होली के पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। पुराणों के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से होली का प्रचलन हु‌आ। सबसे ज्यादा प्रचलित हिरण्यकश्यप की कथा है, जिसमें वह अपने पुत्र प्रहलाद को जलाने के लि‌ए बहन होलिका को बुलाता है। जब होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठती हैं तो वह जल जाती है और भक्त प्रहलाद जीवित रह जाता है। तब से होली का यह त्योहार मनाया जाने लगा है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है। कहा जाता है कि फागुन पूर्णिमा – होली के दिन जो लोग चित्त को एकाग्र करके हिंडोले (झूला) में झूलते हु‌ए भगवान विष्णु Lord Krishna के दर्शन करते हैं, वे निश्चय ही वैकुंठ को जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार नारदजी ने महाराज युधिष्ठिर से कहा था कि हे राजन! फागुन पूर्णिमा – होली के दिन सभी लोगों को अभयदान देना चाहि‌ए, ताकि सारी प्रजा उल्लासपूर्वक हँसे और अट्टहास करते हु‌ए यह होली का त्योहार मना‌ए। इस दिन अट्टहास करने, किलकारियाँ भरने तथा मंत्रोच्चारण से पापात्मा राक्षसों का नाश होता है। होली – होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः ।

अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌ ॥


Play Dhulendi holi होली next day of होलिका दहन: Sunday, 20 March 2011 होली पूजन के पश्चात होलिका का दहन किया जाता है। यह दहन सदैव उस समय करना चाहि‌ए जब भद्रा लग्न न हो। ऐसी मान्यता है कि भद्रा लग्न में होलिका दहन करने से अशुभ परिणाम आते हैं, देश में विद्रोह, अराजकता आदि का माहौल पैदा होता है। इसी प्रकार चतुर्दशी, प्रतिपदा अथवा दिन में भी होलिका दहन करने का विधान नहीं है। होलिका दहन के दौरान गेहूँ की बाल को इसमें सेंकना चाहि‌ए। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के समय बाली सेंककर घर में फैलाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। दूसरी ओर होलिया का यह त्योहार न‌ई फसल के उल्लास में भी मनाया जाता है। होलिका दहन के पश्चात उसकी जो राख निकलती है, जिसे होली – भस्म कहा जाता है, उसे शरीर पर लगाना चाहि‌ए। होली की राख लगाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।

अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥


ऐसी मान्यता है कि जली हु‌ई होली की गर्म राख घर में समृद्धि लाती है। साथ ही ऐसा करने से घर में शांति और प्रेम का वातावरण निर्मित होता है।

रविवार, 17 अप्रैल 2011

माँ दुर्गा मंत्र


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरन्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।

“SARVA MANGALA MAANGALYE SHIVEYSARVAARTH SAADHIKEY, SHARNAYE TRAYAMBAKEY GAURI NAARAAYANI NAMOSTUTEY।”

शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे। सर्वस्यातिहरे देवि नारायण नमोस्तुते।।

“SHARNAAGAT DEENAART PARITRAAN PARAAYANEY, SERVASYARTI HAREY DEVI NAARAAYANI NAMOSTUTEY।”


सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वेशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।। “SARVASVAROOPEY SARVESHEY SARVSHAKTI SAMANVIETEY, BHAYEBHYAH TRAAHI NO DEVI DURGE DEVI NAMOSTUTEY।”

रोगनशेषानपहंसि तुष्टा। रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां। त्वमाश्रिता हृयश्रयतां प्रयान्ति।।

“ROGAAN SHOSHAAN PAHANSITUSHTARUSHTATU KAAMAAN SAKLAAN BHISHTAAN, TVAAM AASHRITAANAAM NA VIPANNARAANAM। TVAAMAASHRITAAHYA SHRAYTAAM PRAYAANTI।”


सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।। सर्वाबाधा विर्निर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।

“SARVA BADHA PRASHMANAN TRAILOKYA SYAKHILESHWARI, EVAMEVMEV TVAYAA KAARYAM SMA DVERI VINAASHNAM। SARVAA BAADHA VINIRUMK TO DHAN DHAANYA SUTAAN VITAH। MANUSHYO MAT PRASAADEN BHAVISHYATI NA SANSHA YAH।”

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ।। “JYANTI MANGALAA KAALI BHADRA KAALI KAPAALINEE DURGAA KSHAMAA SHIVAA DHAATREE SWAAHAA SVADHAA NAMO STUTEY।”

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

“DEHI SAUBHAAGYAM AAROGYAM DEHI DEVI PARAM SUKHAM। RUPAM DEHI JAYAM DEHI YASHO DEHI DVISHO JAHI।”

रविवार, 10 अप्रैल 2011

माँ बगलामुखी का प्रभावशाली मंत्र



प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। 1. काली 2. तारा 3. षोड़षी 4. भुवनेश्वरी 5. छिन्नमस्ता 6. त्रिपुर भैरवी 7. धूमावती 8. बगलामुखी 9. मातंगी 10. कमला। माँ भगवती श्री बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है।


माँ बगलामुखी यंत्र मुकदमों में सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है। माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।

साधनाकाल की सावधानियाँ

- ब्रह्मचर्य का पालन करें।

- पीले वस्त्र धारण करें।

- एक समय भोजन करें। - बाल नहीं कटवाए।

- मंत्र के जप रात्रि के 10 से प्रात: 4 बजे के बीच करें

- दीपक की बाती को हल्दी या पीले रंग में लपेट कर सुखा लें।

- साधना में छत्तीस अक्षर वाला मंत्र श्रेष्‍ठ फलदायी होता है।

- साधना अकेले में, मंदिर में, हिमालय पर या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए।


मंत्र- सिद्ध करने की विधि

- साधना में जरूरी श्री बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है।

- अगर सक्षम हो तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करवाए।

- बगलामुखी यंत्र एवं इसकी संपूर्ण साधना यहाँ देना संभव नहीं है। किंतु आवश्‍यक मंत्र को संक्षिप्त में दिया जा रहा है ताकि जब साधक मंत्र संपन्न करें तब उसे सुविधा रहे।


प्रभावशाली मंत्र माँ बगलामुखी विनियोग -

अस्य : श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।

त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे।

श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।

ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये।

स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।

ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।


आवाहन

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।


ध्यान

सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम् हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।


मंत्र ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।


इन छत्तीस अक्षरों वाले मंत्र में अद्‍भुत प्रभाव है। इसको एक लाख जाप द्वारा सिद्ध किया जाता है। अधिक सिद्धि हेतु पाँच लाख जप भी किए जा सकते हैं। जप की संपूर्णता के पश्चात् दशांश यज्ञ एवं दशांश तर्पण भी आवश्यक है।

Durga Chalisa






नमो नमो दुर्गे सुख करनी Namo Namo Durge Sukh karani नमो नमो



अम्बे दुःख हरनी Namo Namo ambe Dukh हरनी



निराकार है ज्योति तुम्हारी Nirakar hai jyoti तुम्हारी



तिहूँ लोक फैली उजयारी Tihun lok pheli उजयारी



शशि ललाट मुख महाविशाला Shashi lalat mukh महाविशाला



नेत्र लाल भृकुटी विकराला Netra lal bhrikutee विकराला



रूप मातु को अधिक सुहावे Roop Matu ko adhika suhave



दरस करत जन अति सुख पावे Daras karat jan ati sukh pave



तुम संसार शक्ति लाया किना Tum sansar shakti laya किना



पालन हेतु अन्ना धान दिना Paalan hetu anna dhan दिन



अन्नपूर्ण हुई जग पाला Annapurna hui jag पला



तुम्ही आदी सुंदरी बाला Tumhi adi sundari बाला



प्रलय काला सब नाशन हरी Pralaya kala sab nashan हरी



तुम गौरी शिव शंकर प्यारी Tum gauri Shiv-Shankar प्यारी



शिव योगी तुम्हरे गुना गावें Shiv yogi tumhre guna गावें



ब्रह्म विष्णु तुम्हें नित ध्यावें Brahma Vishnu tumhen nit ध्यावें



रूप सरस्वती को तुम धारा Roop Saraswati ko tum धरा



दे सुबुद्धि ऋषि मुनिना उबारा De subuddhi rishi munina उबर



धर्यो रूप नरसिम्हा को अम्बा Dharyo roop Narsimha ko अम्बा



प्रगत भयं फार कर खम्बा Pragat bhayin phar kar खम्बा



रक्षा करी प्रहलाद बचायो Raksha kari Prahlaad बचायो



हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो Hiranakush ko swarga पठायो



लक्ष्मी रूप धरो जग महीन Lakshmi roop dharo jag महीन



श्री नारायण अंगा समिहहीं Shree Narayan anga समिहहीं



क्षीर सिन्धु में करत विलासा Ksheer sindhu men karat विलासा



दया सिन्धु दीजे मन असा Daya Sindhu, deeje man असा



हिंगलाज में तुम्हीं भवानी Hingalaja men tumhin भवानी



महिमा अमिट न जेट बखानी Mahima amit na jet बखानी



मातंगी धूमावती माता Matangi Dhoomavati माता



भुवनेश्वरी बागला सुखदाता Bhuvneshwari bagala सुखदाता



श्री भैरव लारा जोग तरनी Shree Bhairav lara jog तरनी



छिनना भला भावः दुःख निवारानी Chhinna Bhala bhav dukh निवारानी



केहरी वहां सोह भवानी Kehari Vahan soh भवानी



लंगूर वीर चालत अगवानी Langur Veer Chalat अगवानी



कर में खप्पर खडग विराजे Kar men khappar khadag विराजे



जाको देख कल दान भजे Jako dekh kal dan भजे



सोहे अस्त्र और त्रिशूला Sohe astra aur त्रिशूला



जसे उठता शत्रु हिय शूला Jase uthata shatru hiya शूला



नगरकोट में तुम्ही विराजत Nagarkot men tumhi विराजत



तिहूँ लोक में डंका बाजत Tihun lok men danka बजट



शुम्भु निशुम्भु दनुज तुम मारे Shumbhu Nishumbhu Danuja tum मरे



रक्त-बीजा शंखन संहारे Rakta-beeja shankhan संहारे



महिषासुर नृप अति अभिमानी Mahishasur nripa ati अभिमानी



जेहि अघा भर माहि अकुलानी Jehi agha bhar mahi अकुलानी



रूप कराल कलिका धारा Roop karal Kalika धरा



सेन सहित तुम तिन संहार Sen Sahita tum tin संहार



पण गर्हा संतान पर जब जब Pan garha Santan par jab जब



भाई सहाय मातु तुम तब तब Bhayi sahaya Matu tum tab तब



अमर्पुनी अरु बसवा लोक Amarpuni aru basava लोक



तवा महिरना सब रहें असोका Tava Mahirna sab rahen असोका



ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी Jwala men hai jyoti तुम्हारी



तुम्हें सदा पूजें नर नारी Tumhen sada poojen nar नारी



प्रेम भक्ति से जो यश गावे Prem bhakti se Jo yash गावे



दुःख-दरिद्र निकट नहीं आवे Dukh-daridra nikat nahin अवे



ध्यावे तुम्हें जो नर मन ली Dhyave tumhen jo nar man ली



जनम-मरण ताको छुटी जाई Janam-maran tako chuti jaee



जोगी सुर मुनि कहत पुकारी Jogi sur-muni kahat पुकारी



जोग न हो बिन शक्ति तुम्हारी Jog na ho bin shakti तुम्हारी



शंकर आचारज टाप कीन्हों Shankar Aacharaj tap कीन्हों



काम क्रोध जीत सब लीन्हों Kam krodha jeet sab लीन्हों



निसिदिन ध्यान धरो शंकर को Nisidin dhyan dharo Shankar को



कहू कल नहिनी सुमिरो तुम को Kahu kal nahini sumiro tum को



शक्ति रूप को मरण न पायो Shakti roop ko maran na पायो



शक्ति गयी तब मन पछितायो Shakti gayi tab man पछितायो



शरणागत हुई कीर्ति बखानी Sharnagat hui keerti बखानी



जय जय जय जगदम्ब भवानी Jai jai jai Jagdamb भवानी



भाई प्रसन्ना आदि जगदम्बा Bhayi prasanna Aadi जगदम्बा



दाई शक्ति नहीं कीं विलम्बा Dayi shakti nahin keen विलम्बा



मोकों मातु कष्ट अति घेरो Mokon Matu kashta ati घेरो



तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो Tum bin kaun hare dukh मेरो



आशा तृष्णा निपट सातवें Aasha trishna nipat sataven



मोह मदादिक सब बिन्सवें Moh madadik sab बिन्सवें



शत्रु नाश कीजे महारानी Shatru nash keeje महारानी



सुमिरों एकचित तुम्हें भवानी Sumiron ekachita tumhen भवानी



करो कृपा हे मातु दयाला Karo kripa Hey Matu दयाला



रिद्धि सिद्धि दे करहु निहाला Riddhi-Siddhi de karahu निहाला



जब लगी जियूं दया फल पाऊँ Jab lagi jiyoon daya phal पाऊँ



तुम्हरो यश में सदा सुनाऊँ Tumhro yash men sada सुनाऊँ



दुर्गा चालीसा जो गावे Durga Chalisa jo gave



सब सुख भोग परमपद पावे Sab sukh bhog parampad पावे




Posted by:- Er. Yogendra Singh "Yogi"

Jai Mata Ki


‘Vaishnavi’ means the one who is related to lord “Vishnu”. Shri Mata Vaishno Devi Shrine is one of the oldest shrine of India, located at a height of 5200 feet on the folds of the three peaked mountain Trikuta Hills of the Shivalik Hill Range. The Holy cave is 12 Kms (7.45 miles) from the Base Camp Katra. The Goddess Mata Vaishno Devi’s abode is in 100 feet long cave with a narrow opening. The holy cold and crystal clear water washes the lotus feet of the Mata’s “Pindian”. There are three natural pindies representing Maha Sarswati, Maha Lakshmi, Maha Kali, which represent creative, preservative, and destructive aspects of the Super Power. As per the legend, during the period when the Goddess was busy in demolishing the Asuras, her three main manifestations viz. Mata Maha Kali, Mata Maha Lakshmi and Mata Maha Saraswati got together one day and pooled their collective Tejas or spiritual strength. A stunningly bright light aroused from the place where the Tejas of the three manifestations combined and a beautiful young girl emerged out of this Tejas. The young girl asked them, “Why have I been created?” The Devis explained to her that they had created her so that she demolishes Asura (Devil) Mahishasura and she initiates on earth an era of pious and ascetic life so that the peace could prevail upon the world and she through her penance could rise to higher levels of spirituality. The Devis added, “Now, go and take birth in the house of Ratankar Sagar and his wife who resides in south of India, and who are great devotees of ours. Live on earth. Uphold righteousness and evolve yourself spiritually so that you reach higher levels of consciousness. Once you have attained the appropriate level of consciousness you will merge into Vishnu and become one with him.” Sometime later a girl of extraordinary beauty and strength was born to Ratankar and his wife. The couple named the child Vaishnavi. The girl right from her childhood displayed a hunger for knowledge which was like a cyclone and which no amount of teaching and learning could sufficiently satisfy her. Subsequently, Vaishnavi started looking into her inner self for knowledge, and soon learned the art of meditation and realized that meditation and penance only could bring her close to her greater objective. When Vaishnavi was 9 years old, she gave up all household comforts and went deep into the forest for Tapasaya (meditation). Vaishnavi prayed to Lord Vishnu in the form of Rama. During Shri Rama’s search for Sita, he reached the seashore along with his army. His eyes fell on this Divine Girl in deep meditation. Vaishnavi recognized him immediately as no ordinary being but the incarnation of Lord Vishnu, and immediately asked him to merge her into himself so that she could become one with the supreme creator. However Lord Rama, knowing that it was not the appropriate time, dissuaded her by saying that he would visit her again after the end of his exile, and at that time if she succeeded in recognizing him, he would fulfill her wish. True to his words, Lord Rama visited her again after being victorious in the battle, but this time he did so in the disguise of an old man. Unfortunately, Vaishnavi was unable to recognize him this time and was very upset. Upon this, Lord Rama consoled her that the appropriate time for her being one with the creator had not come, and that time would come eventually in ‘Kaliyug’ when He (Rama) would be in his incarnation of ‘Kalki’. Lord Rama also asked her to meditate, and set up an Ashram at the base of Trikuta hills of Manik Mountains, situated in Northen India, to elevate her level of spirituality so as to bless mankind and rid the poor and destitute of their sufferings. Only then would ‘Vishnu’ merge her into himself. Maa decided to observe the ‘Navratra’ for the Victory of Shri Rama against Ravana. Hence one reads the Ramayana during the 9 days of Navratra, in remembrance of the above connection. Vaishnavi, immediately set off for the northern part and after immense hardships, reached the foot of the Trikuta Hills. After reaching there she set up her ashram there and began to meditate. As predicted by Lord Rama, her glory spread far and wide, and people began to flock to her Ashram to seek her blessings. As time passed, a Tantrik named Gorakh Nath who had a vision of the episode between Lord Rama and Vaishnavi in the retrospective time frame, became curious to find out whether Vaishnavi has been able to attain a high level of spirituality or not. He, therefore, sent his most able disciple ‘Bhairon Nath’ to find out the truth. Bhairon Nath on locating the ashram started observing Vaishnavi secretly, and realised that though a ‘Sadhvi’ she was armed by a trident from Shiva, Chakra from Vishnu, a Lion from Himalayas and bows and arrows from Vayu. Bhairon Nath was attracted by Vaishnavi’s extraordinary beauty, and losing all good sense he began to pester Vaishnavi to marry him. There was an ardent devotee of Vaishnavi, Shree dhar, who resided in a village called Hansali, 2 km from the present Katra town. Maa appeared to him in his dream in the form of a young bewitching girl and asked the humble Pandit to hold a ‘Bhandara’ (Community meal). The Pandit set out to invite people from the village and near-by places. He also invited Guru Gorakh Nath along with all his followers including Bhairon. Bhairon Nath asked Shree Dhar how he was planning to fulfill the requirements. He reminded him of the bad consequences in case of failure. As Panditji was lost in worry, the Divine girl appeared and told him not to be depressed as everything had been arranged. She asked that over 360 devotees be seated in the small hut. True to Her word the Bhandara went smoothly with food and place to spare. Bhairon Nath admitted that the girl had supernatural powers and decided to test her further. Bhairon Nath attempted to grab Vaishnavi but she tried her best to daunt him. On failing to do so, Vaishnavi decided to flee away into the mountains to continue her Tapasaya undisturbed. Bhairon Nath however followed her to Trikuta Hills. For 9 months Bhairon Nath was searching for the mystic girl in the mountains. While running away from Bhairon, Devi shot an arrow into the Earth from which water gushed out. The resultant river is known as Baanganga. It is believed that by taking a bath in Baanganga (Baan: Arrow), a believer of the Mother Goddess can wash away all his sins. The banks of the river, known as Charan Paduka, are marked by Devi’s foot imprints, which remains intact till date. Vaishno Devi then took shelter in a cave known as Garbh Joon near Adhkawari where she meditated for 9 months attaining spiritual wisdom and powers. Her meditation was cut short when Bhairon located her. Vaishno Devi was then compelled to take the form of Maha Kali when Bhairon tried to kill her. The manifestation of the Mother Goddess took place at the mouth of the Holy cave at Darbar. The Goddess then beheaded Bhairon with such sheer force that his skull fell at a place known as Bhairon Ghati, 2.5 km from the Holy Cave. In his dying moments, Bhairon realized the futility of his mission and prayed to the deity to forgive him. The Goddess knew that Bhairon’s main intention in attacking her was to achieve salvation. She not only granted Bhairon liberation from the cycle of reincarnation, but also granted him a boon, whereby every devotee would have to have the Darshans of Bhairon after having the Darshans of the Goddess and only then would the yatra of a devotee be complete. Meanwhile Vaishno Devi decided to shed off her human form and assuming the face of a rock she immersed herself into meditation forever. Thus Vaishnavi, in the form of a five and a half feet tall rock with three heads or the Pindies on the top is the ultimate destination of a devotee. After the Bhandhara, Shree dhar was curious to get to the bottom of the mystery shrouding the magical powers of Vaishnavi. Then one day, he had a dream, The Goddess showed him the vision of her cave and also blessed him with the boon of four sons. Shree dhar, happy once again, set out in search of the cave, on the same path that he had witnessed in a dream. He ultimately reached the cave mouth. He made a daily routine of worshiping the ‘Pindis’ in several ways. His worship pleased the Goddess. She appeared in front of him and blessed him. Since that day, Shree dhar and his descendants have been worshiping the Goddess Mother Vaishno देवी.

KRISHNA Janmashtami bhajan

हे आनंद उमंग भयो
जय हो नन्द लाल की
नन्द के आनंद भयो
जय कनैया लाल की
हे ब्रज में आनंद भयो
जय यशोदा लाल की
नन्द के आनंद भयो
जय कन्हैया लाल की
हे आनंद उमंग भयो
जय हो नन्द लाल की
गोकुल के आनंद भयो
जय कन्हैया लाल की
जय यशोदा लाल की
जय हो नन्द लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की
जय हो नन्द लाल की
जय यशोदा लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की
हे आनंद उमंग भयो
जय कन्हैया लाल की
हे कोटि ब्रह्माण्ड के
अधिपति लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की
हे गौने चराने आये
जय हो पशुपाल की
नन्द के आनंद भयो
जय कन्हैया लाल की
आनंद से बोलो सब
जय हो ब्रज लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की
जय हो ब्रज लाल की
पावन प्रतिपाल की
हे नन्द के आनंद भयो
जय हो नन्द लाल की
जय श्री कृष्ण
Jai Shree Krishna